अष्टावक्र गीता-दोहे -7

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अष्टावक्र गीता-7 नमस्कार मुझको रहे,जिसका हो न विनाश। जग-तृण-ब्रह्मा नष्ट हों, अचरज, मैं अविनाश।। नमस्कार मुझको रहे,मैं तनधारी एक। बिना गए-आए कहीं, व्याप्त विश्व मैं नेक।। नमस्कार मुझको सतत,अतुल-दक्ष मम रूप। ...

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